ग़ज़ल
भरे आलम में दीवाना बना डालाहै ,
उनकी आँखों ने ,उनकीआँखों का क्या कहिये !
मैं-औ -जाम हैं या मस्ती -ए -दफ़ीना -
जू-ए - ग़म्ज़ा हैं ,उनकी आँखों का क्या कहिये !
तेज़-रौ-ए-रसा-ए दवा ,जू -ए बहशत ;
गर्दिशे रंगीन-ए-रब,उनकी आँखों का क्या कहिये !
हर शख़्श जो उनकी हल्क हाए-आँख से गाजर जाये -
कर सके न दावा ए वारस्तगी,उनकी आँखों का क्या कहिये !
"अटल" तो कितने ही जास्ती फरिश्तों को दीवाना बना डाला है
उनकी आँखों ने ,उनकी आँखों का क्या कहिये !
"अटल मुरादाबादी "